
पर तिरंगा रहने दो
न मस्जिद को जानते हैं , न शिवालों को जानते हैं,
जो भूखे पेट होते हैं, वो सिर्फ निवालों को जानते हैं,
मेरा यही अंदाज ज़माने को खलता है,
की मेरा चिराग हवा के खिलाफ क्यों जलता है,
में अमन पसंद हूँ, मेरे शहर में दंगा रहने दो,
लाल और हरे में मत बांटो, मेरी छत पर तिरंगा रहने दो…
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